एक फैसले से आदलत मुल्ज़िम को मुजरिम बनाती है
पर अदालत-ए-इश्क़ में फैसला कातिल ही सुनाती है
गुनाह तो किया है हमने उनपे मरने का
अब क्या अगर वह सज़ा-ए-मौत भी सुनाती है?
Copyright © Kannan Narayanamurthy 2018
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पर अदालत-ए-इश्क़ में फैसला कातिल ही सुनाती है
गुनाह तो किया है हमने उनपे मरने का
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